अलेक्ज़ैंडर ग्राहम बेल का जीवन परिचय
शीर्षक देखकर तो आप समझ ही गए होंगे कि आज के इस लेख में हम बात करने वाले एक महान आविष्कारक की जिन्होंने पूरे विश्व में अपने आविष्कार से क्रान्ति ला दी थी। तो आइये जानते हैं कि वो महान व्यक्ति कौन थे।
अलेक्ज़ैंडर ग्राहम बेल (1847-1922 )
परिचय :-
आज के समय में पूरी दुनिया में शायद ही ऐसा कोई हो जो ग्राहम बेल को न जनता हो। दुनिया उन्हें टेलीफोन के अविष्कारक के रूप में जानते हैं। ग्राहम बेल का जन्म 3 मार्च 1847 में स्कॉटलैंड में हुआ था।
अलेक्ज़ैंडर ग्राहम बेल
स्कॉटलैंड अपनी कला और विज्ञानं की स्म्रृद्ध संस्कृति के लिए भी जाना जाता है। इनके 2 भाई थे, मेलविल्ले जेम्स बेल और एडवर्ड चार्ल्स बेल। इनके पिता अलेक्ज़ैंडर मेलविल्ले बेल पेशे से एक प्रोफेसर थे और इनकी माता एलिज़ा ग्रेस सिमोंड्स बेल एक गृहणी थी। इनकी माता बधिर(जिसे सुनाई न देता हो) थी, पर वो अपने परिवार का ख्याल बड़े अच्छे से रखती थी।
इनके दोनों भाई बहुत बीमार रहते थे और एक दिन बीमारी के कारण ही बड़ी कम उम्र में उनकी मृत्यु हो गयी। ग्राहम बेल के पिता गूंगे बहरे लोगों को पढ़ाया करते थे। ग्राहम बेल ने स्कूल में बहुत ज्यादा शिक्षा ग्रहण नहीं की। वे एडिनबुर्ग रॉयल स्कूल में जाते थे लेकिन स्कूल में मन न लगने के कारण उन्होंने 15 साल में ही स्कूल छोड़ दिया था। उनकी प्रारंभिक शिक्षा घर पर ही हुई।
ग्राहम बेल अपनी कॉलेज की पढ़ाई पूरी करने के लिए पहले वेस्टन हाउस अकादमी गए फिर यूनिवर्सिटी ऑफ़ एडिनबुर्ग गए पर वहां भी उनका पढाई में मन नहीं लगा फिर वे 1868 में यूनिवर्सिटी ऑफ़ लंदन गए जहाँ उन्होंने "स्कूल ऑफ़ वोकल फिजियोलॉजी एंड मैकेनिक ऑफ़ स्पीच" का निर्माण किया। इस स्कूल में वे बच्चों को बोलने व् समझने की कला सिखाते थे। कुछ दिन बाद उन्हें वोकल फिजियोलॉजी का प्रोफेसर चुना गया। इस दौरान वे अपने तरह-तरह की खोजों में भी लगे रहते थे। उस समय वे हार्मोनिक टेलीग्राफ पर रिसर्च कर रहे थे और उसे और बेहतर बनाने के लिए वे कड़ी मेहनत कर रहे थे।
माँ बनी प्रेरणास्रोत :-
अपंगता किसी भी व्यक्ति के लिए एक अभिशाप से कम नहीं होती, और इसी लिए ग्राहम बेल अपनी माता के बधिरपन से काफी दुखी रहा करते थे और निरंतर इसी उधेड़बुन में रहते थे कि ऐसा क्या बनाया जाए कि इस तरह के बधिर लोगों की मदद कर सके। वे पहले ही एक तार पर एक ही समय में कई लोगों को टेलीग्राफ सन्देश भेज चुके थे तो उन्हें विचार आया कि यदि वे दूसरे तार पर मानव आवाज द्वारा सन्देश भेजने में सफल हो जाते हैं तो वो ऐसे बधिर लोगों की काफी मदद कर पाएंगे। आखिरकार उन्होंने ऐसे यंत्र की खोज कर ही ली जो आज भी बधिर लोगों के लिए किसी वरदान से कम नहीं है।
बधिरों से लगाव :-
कुछ समय बाद उन्हें अमेरिका के "बोस्टन स्कूल ऑफ़ द डेफ" में नौकरी मिल गयी जहाँ वे बधिरों को पढ़ाया करते थे। यहाँ उन्हें अपने पिता की विज़िबल स्पीच सिस्टम को आगे बढ़ने का विचार आया। जिसमें मुँह से बोली हुई आवाज की तरंगों से एक magnetic needle हिलने लगे और उस needle के vibration से ये समझा जा सके कि क्या कहा गया है।
ग्राहम बेल का विवाह :-
बोस्टन स्कूल में नौकरी करते हुए उनकी मुलाकात एक सज्जन से हुई जिनका नाम गार्डनर ग्रीन हब्बार्ड से हुई जोकि पेशे से एक वकील थे। उनकी बेटी मेबल 4 साल की उम्र में ही स्कारलेट ज्वर से बधिरपन से ग्रसित हो गयी थी। वह 15 वर्ष की थी परन्तु बधिर होने की वजह से उसे बोलने में भी काफी तकलीफ होती थी। इन दिनों बेल अपने मल्टीपल टेलीग्राफ पर काम कर रहे थे, जिसके द्वारा टेलीग्राफ के कई संदेशों को एक साथ ही तार के जरिये भेजा जा सकता हो। मेबल को बेल का काम अच्छा लगता था वो उनके कामों में हाथ बंटाती थी। मेबल के पिता कभी कभी बेल के अविष्कारों में आर्थिक रूप से मदद कर दिया करते थे। बाद में मेबल ही ग्राहम बेल की पत्नी बनी।
अविष्कारों के जनक :-
ग्राहम बेल ने अपने जीवन काल में कई प्रकार के आविष्कार किए। उन्होंने ऑप्टिकल फाइबर सिस्टम, फोटोफोन, बेल और डेसीबल यूनिट, मेटल डिटेक्टर जैसे कई अविष्कार किये। ये सभी ऐसी तकनीक पर आधारित हैं जिसके बिना संचार-क्रांति मुमकिन नहीं थी। उन्होंने 29 साल में ही टेलीफोन की खोज कर ली थी फिर उन्होंने बेल टेलीफोन कंपनी की स्थापना की।
बेल के नवजात पुत्र की जब सांस की समस्या से मृत्यु हो गयी थी तो उन्होंने मेटल जैकेट वैक्यूम का अविष्कार किया जिससे सांस लेने में मदद मिल सके। इस उपकरण को काफी ख्याति मिली बाद में समय समय पर इसमें आवश्यकतानुसार सुधार होते रहे।
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टेलीफोन का आविष्कार :-
एक बार बेल और उनके सहयोगी एक ही बिल्डिंग में अलग अलग मंजिल पे बैठ कर अविष्कारों पर शोध कर रहे थे तभी बेल की पैंट में acid गिर गया और उन्होंने घबरा कर अपने सहयोगी वाटसन को बुलाया "वॉटसन यहाँ आओ मुझे तुम्हारी जरूरत है" यह शब्द पहली बार किसी ने टेलीफोन पर कहे और सुने।
उस दिन पता नहीं ऐसा क्या संयोग हुआ कि जिन यंत्रों को जोड़ने में दोनों कई दिनों से काम कर रहे थे पर उन्हें ध्वनि संचारण में सफलता नहीं मिल रही थी पर अचानक ही ये आवाज वॉटसन ने अपनी मेज पर रखे यन्त्र से सुनी। दोनों ही दंग थे।
फिर क्या था सन 1915 में अंतर्महाद्वीपीय टेलीफोन लाइन बिछ गयी और उसके उद्घाटन के लिए बुलाया गया।
उनसे कहा गया कि आप कुछ बोल कर इस टेलीफोन लाइन का उद्घाटन करिये तो जानते हैं कि उन्होंने क्या कहा ? उन्होंने कहा "वॉटसन यहाँ आओ मुझे तुम्हारी जरूरत है" उस समय वॉटसन तट के दूसरे छोर पर थे तो उन्होंने कहा कि बेल मैं तुमसे 3000 km दूर हूँ, मुझे आने में 3,4 दिन लगेंगे। बहुत ही रोचक घटना है ये।
3 Comments
Very nice informative post
ReplyDeleteWow!
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Nice information
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